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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

पंचतत्व - तत्वो का न्यूनाधिक(imbalance) कंहा होता है

तत्वो का न्यूनाधिक(imbalance) कंहा होता है

ज्योतिष के आधार पे, नवग्रहों के आधार पे, हस्तरेखा के आधार पे, वास्तु के आधार पे और आयुर्वेद के आधार पे तत्वो के न्यूनाधिक होने से दोष बनते है, मानसिक और शारीरिक दोष बनते है, और ये भी निश्चित है कि उपरलिखित सभी विषयों का बीज भी तत्व है।

लेकिन मेरा प्रश्न ये है कि ये तत्वो का न्यूनाधिक होता कंहा है कंहा पे ये तत्व कम या ज्यादा होते है, कैसे ये कम और ज्यादा होते है और कब ये सबसे ज्यादा अपना असर दिखाते है।

मेरा ये मानना है कि ये जो तत्वो का न्यूनाधिक है वो शरीर पे होगा और वंही से ही धीरे धीरे आपके जीवन में और आपके परिवेश और वायुमंडल में फ़ैल जायेगा।

सबसे पहले मन फिर तन और फिर जीवन में ये तत्वो का न्यूनाधिक का प्रभाव दिखेगा और मेरा मानना है कि ये इसी क्रम में वापस सही भी होता है या इसी क्रम में इसे सही किया जाये तो बहुत अच्छे परिणाम मिल सकते है।

और आयुर्वेद भी कहता है कि कोई भी बीमारी कभी भी झटके से नहीं आती वो धीरे धीरे आती है और धीरे धीरे लागु होती है और उस बीमारी को ले कर पहले ही सतर्क हो जाये तो बहुत जल्दी उस पर विजय भी पाई जा सकती है और वो बीमारी जब धीरे धीरे आती है तो पहले मन पे असर डालती है, फिर तन पे असर डालती है और फिर वो जीवन को भी दूषित और कुपित कर देती है।

अंतः दोषो का शुभारंभ शरीर से होता है और ये शरीर ही दोषो का गढ़ है इसलिए इस शरीर के साथ सावधानी रखने से भी बहुत सी जीवन की परेशानियों से बचा जा सकता है।

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