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बुधवार, 11 जुलाई 2018

पंचतत्व विज्ञान - घर आंगन में तुलसी

घर आंगन में तुलसी

      प्राचीन भारत से ले कर आज तक सनातन परंपरा में तुलसी जी को बहुत महत्व दिया गया है इसलिये भारत के सभी क्षेत्रों में तुलसी जी को घर के आंगन में लगाने उनकी पूजा करने और उनकी साज संवारने  की परम्परा रही है

      अगस्त्य संहिता में ऐसा कहा गया है कि जिस प्रकार भगवान श्री राम को सीता माता प्यारी है उसी तरह समस्त फूलों और पत्तो से ज्यादा भगवान को तुलसी जी प्यारी है।

      और अगर कोई इंसान सिर्फ तुलसी जी को ले कर भगवान विष्णु या श्री राम चन्द्र भगवान की पूजा करे या भगवान को अर्पण करे तो वो इंसान जीवन मृत्यु के चक्कर से छूट जाता है और तो और मरे हुए इंसान के मुह में एक तुलसी जी का पत्ता रख कर उसका दाह संस्कार करने से वो नरक की यातनाओं से छूट जाता है।

      और यंहा तक कि तुलसी वन के एक कोश तक की परिमिति को पवित्र और शुद्ध जानना चाहिए।

      वेद, पुराण और सनातन शास्त्रों में तुलसी जी के वर्णन से पुस्तके भरी पड़ी है

     इसके अलावा तुलसी को आयुर्वेद ने संजीवनी तक कह दिया है और तुलसी जी के गुणगान करते करते आयुर्वेद शास्त्रों की जबान नही थकती है।

    जब महऋषि अगस्त्य ने ये कहा कि जंहा तुलसी वन है उसके आस पास एक कोश (यानी 12 km) का जगह पवित्र और शुद्ध हो जाती है तो वंहा की सारी नकारात्मकता खत्म हो जाती है।

      

      आइए इस परंपरा को तत्व विज्ञान के हिसाब से इसके महत्व को और भी ज्यादा मजबुत करते है।

      तुलसी जी का सम्बंध तत्व विज्ञान में अग्नि से है और अग्नि समस्त रस और फलों का कारक है और अग्नि के बिना कोई भी रस नही बन सकता है, इसके अलावा जंहा अग्नि की मौजूदगी होगी वंहा आकाश और वायु अपना प्रभाव कभी नही दे पाएंगे इसलिए जब तुलसी जी को आंगन में स्थापित करने से सभी आकाशीय और वायु की शक्तियां अपना कभी प्रभाव नही दे पाएगा।

      आकाशीय और वायु की शक्तिओ में अंतरिक्ष राक्षस, भूत - प्रेत, नाकारत्मक शक्तियां और सभी तरह की नकारात्मकता को देखता है।

        इसलिए तुलसी जी को भारत के हर क्षेत्र के घर आंगन में लगाने की परंपरा है।

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